Wednesday, November 14, 2018

दवाइयों की ऑनलाइन ब्रिकी पर बन सकते हैं नियम

बिनी और सचिन बंसल ने साल 2007 में फ़्लिपकार्ट की शुरुआत की और पहले सिर्फ़ किताबें बेचने का फ़ैसला किया. दोनों ने 4 लाख रुपये पूंजी के साथ कंपनी शुरू की. शुरुआती काम था किताबों की होम डिलिवरी. वो मालिक भी ख़ुद थे और कर्मचारी भी.
बिनी और सचिन बंसल ख़ुद किताबें ख़रीदते और वेबसाइट पर आए ऑडर्स पर अपने स्कूटर से डिलीवरी करते. कंपनी के पास प्रचार के भी खास साधन नहीं थे इसलिए दोनों बुक स्टोर्स के पास जाकर अपनी कंपनी के पर्चे भी दिया करते थे.
​धीरे-धीरे कंपनी ने कदम बढ़ाने शुरू किए. इसके बाद दोनों ने साल 2008 में बैंगलुरू में एक फ्लैट और दो कंप्यूटर सिस्टम के साथ अपना ऑफिस खोला. अब उन्हें हर दिन करीब 100 ऑर्डर मिलने लगे.
इसके बाद फ़्लिपकार्ट ने बेंगलुरू में सोशल बुक डिस्कवरी सर्विस 'वीरीड' और 'लुलु डॉटकॉम' को ख़रीद लिया.
साल 2011 में फ़्लिपकार्ट ने कई और कंपनियां खरीदीं जिनमें बॉलीवुड पोर्टल चकपक की डिजिटल कंटेट लाइब्रेरी भी शामिल थी.
ऑनलाइन सामान लेते वक़्त कई लोगों के मन में कई तरह की आशंकाएं थीं. सामान की गुणवत्ता से लेकर उसकी डिलिवरी की टाइमिंग तक. ये सब सोचते हुए लोग ऑनलाइन पेमेंट करने की बजाय कैश ऑन डिलिवरी का सुरक्षित विकल्प अपनाते हैं.
लेकिन, फ़्लिपकार्ट ने इसी मुश्किल को मौक़े में बदल लिया. बिनी और सचिन बंसल पहली बार भारत में कैश ऑन डिलिवरी का विकल्प लेकर आए. इससे लोगों को अपना पैसा सुरक्षित महसूस हुआ और कंपनी पर भरोसा भी बढ़ता गया.
साल 2008-09 में फ़्लिपकार्ट ने 4 करोड़ रुपये की बिक्री कर दी. इसके बाद निवेशक भी इस कंपनी की ओर आकर्षित हुए.
बिनी और सचिन बंसल मानते हैं कि ऑनलाइन ​रिटेल में कस्टमर सर्विस बहुत बड़ा फैक्टर है. वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता को दिए गए इंटरव्यू में सचिन बंसल और बिनी बंसल ने कहा था कि वो कंस्टमर सर्विस टीम के साथ दो-दो दिन बिताते हैं और उनकी सुझावों व शिकायतों पर काम करते हैं.
वहीं, कंपनी ने सर्च इंजन ऑप्टिमाइज़ेशन पर भी काम किया. इसका मतलब ये है कि जब कोई किताब ख़रीदने के लिए उसका नाम किसी सर्च इंजन में डालता तो सबसे ऊपर फ़्लिपकार्ट का नाम आता. इस कारण कंपनी को विज्ञापन भी मिलने लगे.
निवेश हर नई कंपनी के लिए बड़ी ज़रूरत होती है. शुरुआती दौर फ़्लिपकार्ट के लिए भी मुश्किलों भरा रहा. आगे चलकर कंपनी में साल 2009 में ऐसेल इंडिया ने 10 लाख डॉलर का निवेश किया जो साल 2010 में एक करोड़ डॉलर पहुंच गया.
इसके बाद 2011 में फ़्लिपकार्ट को एक और बड़ा निवेशक टाइगर ग्लोब मिला जिसने दो करोड़ डॉलर का निवेश किया. ऐसेल इंडिया और टाइगर ग्लोब लगातार फ़्लिपकार्ट के साथ जुड़े रहे.
वेबसाइट चल निकली तो किताबों के अलावा फर्नीचर, कपड़े, असेसरीज, इलेक्ट्रॉनिक्स और गैजेट जैसे सामान भी बेचे जाने लगे.
ई-कॉमर्स का बाज़ार बढ़ने के साथ फ़्लिपकार्ट को दूसरी कंपनियों से चुनौती मिलने लगी थी. इसी को देखते हुए उन्होंने कुछ ऑनलाइन रिटेल वेबसाइट को ख़रीदा.
फ़्लिपकार्ट ने 2014 में मिंत्रा और 2015 में जबॉन्ग को ख़रीद लिया. कंपनी स्नैपडील को भी ख़रीदना चाहती थी लेकिन बात नहीं बन पाई.
लेकिन, मार्च 2018 में ही वॉलमार्ट ने ​फ़्लिपकार्ट की 77 प्रतिशत हिस्सेदारी 16 अरब डॉलर में ख़रीद ली.
दरअसल, कंपनी को अमेज़ॉन के भारत में आने के साथ ही चुनौती मिलनी शुरू हो गई थी. इस प्रतिस्पर्धा में उन्हें काफ़ी निवेश करना पड़ रहा था.
हालांकि, वॉलमार्ट के साथ अमेज़ॉन भी ​फ़्लिपकार्ट को ख़रीदने की रेस में शामिल थी लेकिन वॉलमार्ट आगे रही.
मार्च 2018 को ख़त्म हुए वित्तीय वर्ष में कंपनी ने 7.5 अरब डॉलर की बिक्री की थी. पिछले साल के मुक़बाले उसकी बिक्री में 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी.